ग्वालिंग सरना -जशपुर
ग्वालिंग सरना -जशपुर
जशपुर से कुसमी जाने वाले मार्ग पर हर्राडीपा ग्राम के नजदीक ग्वालिंग सरनाग्वालिंग सरना -जशपुर
जशपुर से कुसमी जाने वाले मार्ग पर हर्राडीपा ग्राम के नजदीक ग्वालिंग सरना में प्राचीनतम मंदिर के अवशेष व शिवलिंग इस बात को उजागर करता है कि प्राचीन काल में कभी यहां पर मंदिर रहा होगा। और मंदिर के रखरखाव के अभाव में यह प्राकृतिक आपदावश खंडहर होकर गिर गया होगा। अवशेष व टुकड़े पड़े गुंबद में लगाए जाने वाले पत्थर के नक्काशी युक्त चक्र को देखने से ऐसा प्रतीत होता है कि सैकड़ो वर्ष पूर्व कभी यहां मंदिर रहा होगा। यहां मंदिर के पत्थरों के नक्काशी युक्त टुकड़ों के अलावा छोटे-बड़े कई शिवलिंग मौजूद है जिसकी आज भी लोग पूजा अर्चना करते हैं। लोगों द्वारा बताया जाता है कि इस स्थल में पहले घने जंगल नियम झाड़ियां की भरमार थी। सबसे पहले यहां अहीर जाति के एक व्यक्ति ने इस शिवलिंग को देखा। और अपने गांव जाकर लोगों को बतलाया, तब से ग्राम वासी द्वारा लगातार इसकी पूजा की जाती रही। धीरे-धीरे पुरे झाड़ियां घर गई। एक दिन ग्रामीण बितना राम ने अवश्य घरेलू कार्य हेतु वहां वृक्ष काटने गया। तो उसने देखा कि जिस स्थान से लोगों द्वारा शिवलिंग उठाकर ले जाया गया था वहां पर पुन अपने आप शिवलिंग निकल आया। उसने अपने गांव जाकर शिवलिंग के पुन: निकल आने की घटना की जानकारी लोगों को दी। यह घटना सन 1960 के आसपास की है। तब से लोगों द्वारा यहां पूजा अर्चना प्रारंभ कर दी गई। यहां पर अब स्वयंभू शिवलिंग के अलावा छोटे-छोटे कई शिवलिंग है। सती देवी देवताओं की खंडित मूर्तियां भी हैं। प्रतिवर्ष यहां रामनवमी के दिन मेला लगता है। वही शिवरात्रि के दिन भारी संख्याओं में ग्रामीण जनों द्वारा पूजा की जाती है । यदि पुरातत्व विभाग द्वारा खुदाई की जावे तो और भी मूर्तियों या मंदिर के अवशेष निकाल सकते हैं। इस मंदिर का निर्माण किसने करवाया था शिवलिंग के अलावा किन-किन भावनाओं की स्थापना यहां थी? इस स्थल पर पड़े पत्थर पर में शिल्प कला के नमूने भी दिखाई देते हैं जो इस बात को प्रकट करते हैं कि इस मंदिर में शिल्प कला की उत्कृष्ट प्रस्तुति रही होगी। पत्थरों के टुकड़ों को देखने से लगता है कि आसपास के वनों में उपलब्ध चट्टानों को काटकर ही उसे पर नक्काशी की गई थी। क्योंकि उसी प्रकार के चट्टानों की उपलब्धता क्षेत्र में है। जशपुर जिले के जानकर एवं इतिहासकार डॉ विजय रक्षित ने बताया कि इस पुरातात्विक स्थल के संरक्षण करने की आवश्यकता है। में प्राचीनतम मंदिर के अवशेष व शिवलिंग इस बात को उजागर करता है कि प्राचीन काल में कभी यहां पर मंदिर रहा होगा। और मंदिर के रखरखाव के अभाव में यह प्राकृतिक आपदावश खंडहर होकर गिर गया होगा। अवशेष व टुकड़े पड़े गुंबद में लगाए जाने वाले पत्थर के नक्काशी युक्त चक्र को देखने से ऐसा प्रतीत होता है कि सैकड़ो वर्ष पूर्व कभी यहां मंदिर रहा होगा। यहां मंदिर के पत्थरों के नक्काशी युक्त टुकड़ों के अलावा छोटे-बड़े कई शिवलिंग मौजूद है जिसकी आज भी लोग पूजा अर्चना करते हैं। लोगों द्वारा बताया जाता है कि इस स्थल में पहले घने जंगल नियम झाड़ियां की भरमार थी। सबसे पहले यहां अहीर जाति के एक व्यक्ति ने इस शिवलिंग को देखा। और अपने गांव जाकर लोगों को बतलाया, तब से ग्राम वासी द्वारा लगातार इसकी पूजा की जाती रही। धीरे-धीरे पुरे झाड़ियां घर गई। एक दिन ग्रामीण बितना राम ने अवश्य घरेलू कार्य हेतु वहां वृक्ष काटने गया। तो उसने देखा कि जिस स्थान से लोगों द्वारा शिवलिंग उठाकर ले जाया गया था वहां पर पुन अपने आप शिवलिंग निकल आया। उसने अपने गांव जाकर शिवलिंग के पुन: निकल आने की घटना की जानकारी लोगों को दी। यह घटना सन 1960 के आसपास की है। तब से लोगों द्वारा यहां पूजा अर्चना प्रारंभ कर दी गई। यहां पर अब स्वयंभू शिवलिंग के अलावा छोटे-छोटे कई शिवलिंग है। सती देवी देवताओं की खंडित मूर्तियां भी हैं। प्रतिवर्ष यहां रामनवमी के दिन मेला लगता है। वही शिवरात्रि के दिन भारी संख्याओं में ग्रामीण जनों द्वारा पूजा की जाती है । यदि पुरातत्व विभाग द्वारा खुदाई की जावे तो और भी मूर्तियों या मंदिर के अवशेष निकाल सकते हैं। इस मंदिर का निर्माण किसने करवाया था शिवलिंग के अलावा किन-किन भावनाओं की स्थापना यहां थी? इस स्थल पर पड़े पत्थर पर में शिल्प कला के नमूने भी दिखाई देते हैं जो इस बात को प्रकट करते हैं कि इस मंदिर में शिल्प कला की उत्कृष्ट प्रस्तुति रही होगी। पत्थरों के टुकड़ों को देखने से लगता है कि आसपास के वनों में उपलब्ध चट्टानों को काटकर ही उसे पर नक्काशी की गई थी। क्योंकि उसी प्रकार के चट्टानों की उपलब्धता क्षेत्र में है। जशपुर जिले के जानकर एवं इतिहासकार डॉ विजय रक्षित ने बताया कि इस पुरातात्विक स्थल के संरक्षण करने की आवश्यकता है।